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96 वर्षीय भाजपा दिग्गज लाल कृष्ण आडवाणी को दिल्ली के अस्पताल से मिली छुट्टी

Uma Imagem 15 टिप्पणि 4 जुलाई 2024

लाल कृष्ण आडवाणी: भाजपा के स्तंभ

लाल कृष्ण आडवाणी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक हैं। 96 वर्षीय आडवाणी, जिन्होंने भारतीय राजनीति में अपना एक विशेष स्थान बनाया है, को हाल ही में दिल्ली के अपोलो अस्पताल से छुट्टी मिली है। उन्हें पहले ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) में भर्ती किया गया था, और वहाँ से छुट्टी मिलने के बाद अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

स्वास्थ्य की निगरानी

जब आडवाणी को अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तो उनकी स्वास्थ्य स्थिति का निरीक्षण करने के लिए उरोलॉजी, कार्डियोलॉजी और जेरियाट्रिक चिकित्सा के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम बनाई गई थी। डॉक्टरों ने उनके सेहत का पूरा ख्याल रखा और लगातार उनकी स्थिति की निगरानी की। उनकी स्थिति को स्थिर बताते हुए डॉक्टरों ने उन्हें गुरुवार को अस्पताल से छुट्टी दे दी।

एक विशेष यात्रा

लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनकी शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई और वे वहीं से एक मजबूत राजनीतिक व्यक्तित्व बने। जीवन के हर पड़ाव पर अपने दृढ़ निश्चय और कार्यक्षमता के कारण वे अपनी पहचान बनाते गए। उन्हें 30 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनके राजनीतिक जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

राजनीतिक सफ़र

1960 के दशक में आडवाणी ने 'ऑर्गनाइजर' पत्रिका में सह-संपादक के रूप में कार्य किया। लेकिन 1967 में उन्होंने पूरी तरह से राजनीति में कदम रख लिया। 1986 में जब वे भाजपा के अध्यक्ष बने, तो उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद (विहिंप) के राम मंदिर आंदोलन को अपना समर्थन दिया। 1990, 1993 से 1998, और 2004 से 2005 तक उन्होंने भाजपा की अगुवाई की। उनके नेतृत्व में पार्टी ने कई महत्वपूर्ण सफलताएँ हासिल कीं।

राजनीति में योगदान

लाल कृष्ण आडवाणी ने राजनीति में एक गहरी छाप छोड़ी है। वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े और 1970 में संसद सदस्य बने। उन्होंने 1989 में अपने पहले लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली से चुनाव लड़ा और मोहिनी गिरी को हराया।

सयुंक्त राष्ट्र संघ और भारतीय राजनीति

उपप्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ दिया और कई अहम नीतिगत निर्णय लिए। उनके मार्गदर्शन में भाजपा ने भारतीय राजनीति में एक मजबूत पकड़ बनाई और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। उनकी राजनीतिक कुशलता और दूरदृष्टि ने उन्होंने भाजपा को मुख्यधारा की राजनीति में एक मजबूत स्थान पर स्थापित किया।

2013 में इस्तीफा

आडवाणी ने 2013 में सभी पार्टी पदों से इस्तीफा दे दिया, जब नरेंद्र मोदी को 2014 के चुनाव अभियान के लिए भाजपा का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। उनके इस निर्णय ने उस समय बहुत से लोगों को चौंका दिया लेकिन यह भी उनकी नैतिक दृष्टिकोण और सराहनीय राजनीतिक संयम का एक दृष्टांत था।

आगे की राह

लाल कृष्ण आडवाणी का स्वास्थ्य अब स्थिर है और वे अपने समर्पित राजनीतिक जीवन के बाद जीवन का सुखद अनुभव कर रहे हैं। उनका राजनीतिक यात्रा और योगदान हमेशा भारतीय राजनीति में एक प्रेरणा स्रोत रहेगा।

15 टिप्पणि

  1. Harsh Vardhan pandey
    Harsh Vardhan pandey
    जुलाई 5 2024

    ये सब बकवास पढ़कर लगता है जैसे किसी ने एक जीवन की डायरी को प्रेस रिलीज में बदल दिया हो।

  2. Sohini Baliga
    Sohini Baliga
    जुलाई 6 2024

    लाल कृष्ण आडवाणी जी का जीवन एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे निष्ठा और दृढ़ता से कोई भी चुनौती पार की जा सकती है।
    उनकी सेवा भारत के लिए अमूल्य है।

  3. Senthil Kumar
    Senthil Kumar
    जुलाई 7 2024

    एक ऐसे व्यक्ति को अस्पताल से छुट्टी मिलना हम सभी के लिए प्रेरणा है। उनकी जीवन शैली और निर्णय लेने का तरीका युवा पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक है।

  4. Anu Baraya
    Anu Baraya
    जुलाई 7 2024

    हमें ऐसे नेताओं की जरूरत है जो न सिर्फ भाषा बोलें बल्कि काम करें। आडवाणी जी ने हमेशा ऐसा ही किया।
    उनकी वाणी ने देश को जोड़ा, उनकी नीतियों ने भारत को स्थिरता दी।

  5. Divyangana Singh
    Divyangana Singh
    जुलाई 9 2024

    कभी-कभी ऐसा लगता है कि इतिहास के अध्याय अब भी जीवित हैं।
    आडवाणी जी जैसे व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्कृति हैं।
    उनकी आवाज़ ने उस समय धर्म के बजाय राष्ट्र को प्राथमिकता दी।
    उनके बिना भाजपा का आज का रूप अधूरा होता।
    उन्होंने भाषा को बहुत गहराई से समझा, न कि बस ध्वनि के रूप में।
    उनकी चुप्पी भी एक वक्तव्य थी, उनकी बातें भी एक शास्त्र थीं।
    वे वह नेता थे जिन्होंने आत्मनिर्भरता को राजनीति का अंग बनाया।
    उनकी यात्रा एक जन्म की यात्रा नहीं, बल्कि एक सदी की यात्रा है।
    उन्होंने देश को बदलने के लिए नहीं, बल्कि उसे समझने के लिए जीवन जिया।
    उनकी विचारधारा अब भी चल रही है, बस अब वह अनुशासन के रूप में है।
    उनके लिए राजनीति एक अभिमान नहीं, एक धर्म था।
    वे अकेले नहीं थे, वे एक विचार के साथ चलते थे।
    उनकी आत्मा अभी भी दिल्ली के हर राजनीतिक दरवाजे पर खड़ी है।
    हम उनके बाद की पीढ़ी हैं, जिन्हें उनकी चाल नहीं, उनकी चिंतन शैली को आत्मसात करना है।
    क्या हम उनकी तरह बैठ सकते हैं और बिना बोले समझ सकते हैं?

  6. suresh sankati
    suresh sankati
    जुलाई 10 2024

    क्या आपने कभी सोचा कि ये सब निर्माण का एक बड़ा मेमोरियल है? एक व्यक्ति के लिए इतनी लंबी लिस्ट बनाना तो बस एक अर्थहीन आयोजन है।

  7. shiv raj
    shiv raj
    जुलाई 11 2024

    बहुत अच्छा लगा आडवाणी जी की ये कहानी पढ़कर।
    हमें ऐसे लोगों की जरूरत है जो खुद को बाहर नहीं लाते।
    मैंने उनका एक इंटरव्यू देखा था जहाँ उन्होंने कहा था कि नेता बनने के लिए ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं, बल्कि सुनने की होती है।
    उनकी बातें अब भी मेरे दिमाग में घूम रही हैं।

  8. vaibhav tomar
    vaibhav tomar
    जुलाई 11 2024

    कभी कभी लगता है जैसे ये सब लोग अपने जीवन को इतिहास बनाने के लिए जी रहे हैं।
    लेकिन आडवाणी जी तो असली थे।
    उन्होंने कभी खुद को बड़ा नहीं बताया, बस काम किया।
    और ये बात आज के राजनीति में बहुत कम मिलती है।

  9. manohar jha
    manohar jha
    जुलाई 12 2024

    कराची से शुरू होकर भारत रत्न तक का सफर... ये वो है जो देश को अपना बनाता है।
    उनकी जड़ें पाकिस्तान में थीं, लेकिन उनका दिल भारत में था।
    ये ही असली राष्ट्रीयता है।

  10. Sanjeev Kumar
    Sanjeev Kumar
    जुलाई 13 2024

    जब आदमी बोलता है तो वह अपने विचार बताता है, लेकिन जब आडवाणी जी बोलते थे तो वह एक विचार का जन्म देते थे।
    उनकी बातें अब भी बाजार में बेची जाती हैं, बस अब वह अर्थ बदल गया है।
    उन्होंने भाषा को नहीं, चिंतन को बदल दिया।
    उनके बाद के नेता बोलने के लिए आते हैं, वे तो सोचने के लिए आते थे।

  11. Nitya Tyagi
    Nitya Tyagi
    जुलाई 14 2024

    ये सब तो बस एक बड़ा बहाना है जिससे कुछ लोग अपनी अहंकार को दिखाते हैं।
    एक वृद्ध आदमी को अस्पताल से छुट्टी मिली और देश ने इतना शोर मचा दिया... क्या ये न्याय है?

  12. kriti trivedi
    kriti trivedi
    जुलाई 15 2024

    आडवाणी जी के बारे में ये सब लिखना तो बस एक धर्म की तरह है, जिसे आज भी लोग पूजते हैं।
    लेकिन जब आप उनकी नीतियों को देखें तो लगता है जैसे उन्होंने देश को एक तरफ खींच लिया और दूसरी तरफ जाने वालों को रोक दिया।
    वे नेता थे, न कि पूजा का विषय।
    उनके बाद के लोग उनके नाम का उपयोग करके अपनी जीत को वैध बनाते हैं।
    उनकी विचारधारा अब एक लोगो बन गई है।
    लेकिन उनका वास्तविक संदेश क्या था? वह तो ये था कि अपने विचारों के लिए लड़ो, लेकिन अपने दिल के साथ।
    आज के लोग तो बस उनके नाम को चिपकाकर खुद को बड़ा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

  13. Hemlata Arora
    Hemlata Arora
    जुलाई 16 2024

    यह लेख बहुत अधूरा है। आडवाणी जी के बारे में जो बातें नहीं बताई गईं, वे बहुत महत्वपूर्ण हैं।
    उनके नेतृत्व के दौरान जो विवाद थे, उनका जिक्र नहीं किया गया।
    क्या ये चुनौती के बारे में बात नहीं करना है? क्या ये बस एक प्रशंसा पत्र है?

  14. Pooja Kri
    Pooja Kri
    जुलाई 17 2024

    इन दिनों सब कुछ अतिरंजित हो रहा है। एक वृद्ध व्यक्ति को अस्पताल से छुट्टी मिल गई और सब ने इसे एक राष्ट्रीय घटना बना दिया।
    ये ट्रेंड नहीं है, ये भावनाओं का दुरुपयोग है।

  15. Shatakshi Pathak
    Shatakshi Pathak
    जुलाई 17 2024

    क्या आप जानते हैं कि आडवाणी जी ने अपने बेटे को राजनीति में नहीं आने दिया? उन्होंने कहा था कि राजनीति एक व्यक्तिगत जीवन का हिस्सा नहीं होनी चाहिए।
    आज के लोग अपने बच्चों को राजनीति में घुसाने के लिए तैयार हैं।

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