लाल कृष्ण आडवाणी: भाजपा के स्तंभ
लाल कृष्ण आडवाणी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक हैं। 96 वर्षीय आडवाणी, जिन्होंने भारतीय राजनीति में अपना एक विशेष स्थान बनाया है, को हाल ही में दिल्ली के अपोलो अस्पताल से छुट्टी मिली है। उन्हें पहले ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) में भर्ती किया गया था, और वहाँ से छुट्टी मिलने के बाद अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
स्वास्थ्य की निगरानी
जब आडवाणी को अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तो उनकी स्वास्थ्य स्थिति का निरीक्षण करने के लिए उरोलॉजी, कार्डियोलॉजी और जेरियाट्रिक चिकित्सा के विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम बनाई गई थी। डॉक्टरों ने उनके सेहत का पूरा ख्याल रखा और लगातार उनकी स्थिति की निगरानी की। उनकी स्थिति को स्थिर बताते हुए डॉक्टरों ने उन्हें गुरुवार को अस्पताल से छुट्टी दे दी।
एक विशेष यात्रा
लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। उनकी शिक्षा-दीक्षा वहीं हुई और वे वहीं से एक मजबूत राजनीतिक व्यक्तित्व बने। जीवन के हर पड़ाव पर अपने दृढ़ निश्चय और कार्यक्षमता के कारण वे अपनी पहचान बनाते गए। उन्हें 30 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनके राजनीतिक जीवन की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
राजनीतिक सफ़र
1960 के दशक में आडवाणी ने 'ऑर्गनाइजर' पत्रिका में सह-संपादक के रूप में कार्य किया। लेकिन 1967 में उन्होंने पूरी तरह से राजनीति में कदम रख लिया। 1986 में जब वे भाजपा के अध्यक्ष बने, तो उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद (विहिंप) के राम मंदिर आंदोलन को अपना समर्थन दिया। 1990, 1993 से 1998, और 2004 से 2005 तक उन्होंने भाजपा की अगुवाई की। उनके नेतृत्व में पार्टी ने कई महत्वपूर्ण सफलताएँ हासिल कीं।
राजनीति में योगदान
लाल कृष्ण आडवाणी ने राजनीति में एक गहरी छाप छोड़ी है। वे 1942 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े और 1970 में संसद सदस्य बने। उन्होंने 1989 में अपने पहले लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली से चुनाव लड़ा और मोहिनी गिरी को हराया।
सयुंक्त राष्ट्र संघ और भारतीय राजनीति
उपप्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ दिया और कई अहम नीतिगत निर्णय लिए। उनके मार्गदर्शन में भाजपा ने भारतीय राजनीति में एक मजबूत पकड़ बनाई और राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। उनकी राजनीतिक कुशलता और दूरदृष्टि ने उन्होंने भाजपा को मुख्यधारा की राजनीति में एक मजबूत स्थान पर स्थापित किया।
2013 में इस्तीफा
आडवाणी ने 2013 में सभी पार्टी पदों से इस्तीफा दे दिया, जब नरेंद्र मोदी को 2014 के चुनाव अभियान के लिए भाजपा का नेतृत्व करने के लिए चुना गया था। उनके इस निर्णय ने उस समय बहुत से लोगों को चौंका दिया लेकिन यह भी उनकी नैतिक दृष्टिकोण और सराहनीय राजनीतिक संयम का एक दृष्टांत था।
आगे की राह
लाल कृष्ण आडवाणी का स्वास्थ्य अब स्थिर है और वे अपने समर्पित राजनीतिक जीवन के बाद जीवन का सुखद अनुभव कर रहे हैं। उनका राजनीतिक यात्रा और योगदान हमेशा भारतीय राजनीति में एक प्रेरणा स्रोत रहेगा।
Harsh Vardhan pandey
जुलाई 5 2024ये सब बकवास पढ़कर लगता है जैसे किसी ने एक जीवन की डायरी को प्रेस रिलीज में बदल दिया हो।