तुलसी विवाह का महत्व और विशेषता
हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष स्थान है। यह पर्व भगवान विष्णु और तुलसी माता के सांकेतिक विवाह के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और उन्हें एक सुखद वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है। तुलसी, जिन्हें भगवान विष्णु की परम भक्त माना जाता है, के विवाह की शुभ तिथि कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाई जाती है। इसे देवप्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है जब भगवान विष्णु चार महीने के योगनिद्रा के बाद जागते हैं।
तुलसी विवाह की तैयारी और विधि
तुलसी विवाह को धूमधाम से मनाने के लिए सबसे पहले भक्तों को घर और तुलसी के पौधे को साफ-सुथरा करना आवश्यक होता है। गणपति बप्पा की पूजा के बाद तुलसी माता के पौधे को रंगीन कपड़ों और फूलों से सजाया जाता है। तुलसी के साथ ही भगवान विष्णु का प्रतिनिधित्व करने वाले शालिग्राम को भी सजाया जाता है।
इसके बाद, एक आकर्षक मंडप तैयार किया जाता है, जहाँ तुलसी के पौधे के चारों तरफ केले या आम के पत्तों का इस्तेमाल किया जाता है। इस मंडप में तुलसी और शालिग्राम को विराजमान कर पूजा की जाती है। विधिवत मंत्रों के उच्चारण के साथ यह विवाह संपन्न होता है।
शुभ मुहूर्त और पूजा सामग्री
तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त संध्या 5:29 से 7:52 बजे के बीच होता है। इस नियम के पालन के लिए भक्तों को सबसे पहले स्नान करना चाहिए, ताकि वे पूरी तरह से शुद्ध हो सकें। पूजा सामग्री के रूप में चावल, हल्दी, कुमकुम, चंदन, फूल, अगरबत्ती, दीपक और नैवेद्य की व्यवस्था की जानी चाहिए। तुलसी और शालिग्राम के बीच मौली बाँधी जाती है, और फिर पूजा समाप्त करने के लिए सात बार उनके चारों ओर परिक्रमा की जाती है।
मंत्रों का महत्व और उच्चारण विधि
पूजा के दौरान तुलसी और भगवान विष्णु के विशेष मंत्रों का जाप अनिवार्य होता है, जो इस अवसर को और अधिक पवित्र बना देते हैं। तुलसी माता के लिए 'तुलस्यै नमः', 'श्री तुलस्यै नमः', और भगवान विष्णु के लिए 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' जैस मंत्रों का पाठ किया जाता है।
इसके अतिरिक्त 'श्रीमान नारायण नारायणाये नमः', 'श्री शालिग्राम नारायणाय नमः', और 'श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव' जैसे मंत्र भी इस अवसर पर मुदित चित्त के साथ गाये जाते हैं। ये मंत्र सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की प्रसन्नता के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं।
तुलसी विवाह का सामाजिक और आध्यात्मिक प्रभाव
तुलसी विवाह का सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व विशाल है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि मनुष्यों के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक जुड़ाव का प्रतीक भी है। तुलसी विवाह की खुशी में संयुक्त परिवारों का उत्सव, रिश्तों का प्रगाढ़ होना और समाज में भाईचारे का संदेश पाया जाता है।
इस पर्व के द्वारा पूरा परिवार एकजुट होता है और इस आयोजन के माध्यम से युवा पीढ़ी को पारंपरिक मूल्यों से परिचित कराया जाता है। इसके अलावा, तुलसी विवाह के सामाजिक पक्ष का एक और महत्वपूर्ण असर यह है कि इससे पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी का बोध होता है, क्योंकि तुलसी का पौधा न केवल धार्मिक बल्कि स्वास्थ्यवर्धक गुणों के लिए भी जाना जाता है।
अतः तुलसी विवाह का पर्व अपनी परंपरा, आस्थाओं और मान्यताओं के साथ समृद्धि, सुख-शांति और समाज के संतुलन को बनाये रखने का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता है। इस पर्व का अनुपालन मात्र धार्मिक पहलू से नहीं, बल्कि एक समर्पित दृष्टिकोण से जीवन को किसी बेहतर दिशा में ले जाने का संकल्प भी है।
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