बिल्कुल अप्रत्याशित ढंग से इस बार दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य ने एक बड़ा मोड़ देखा। BJP ने 70 सीटों में 48 सीटें जीत कर दो‑तीहाई बहुमत हासिल किया, जिससे 27 वर्षों बाद राजधानी में फिर से सत्ता में आ गया। इस जीत ने ऐतिहासिक रूप से AAP के एक दशक से अधिक के शासन को समाप्त कर दिया, जबकि कांग्रेस पूरी तरह से बाहर रह गई।
परिणाम का विस्तृत विश्लेषण
खींचते‑खींचते मतदान की फसल में AAP को केवल 22 सीटें ही मिलीं। इसके अलावा, प्रमुख नेताओं जैसे मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और सौरभ भरद्वाज समेत कई प्रमुख चेहरों ने अपने-अपने क्षेत्रों में हार का सामना किया। न्यू दिल्ली में सबसे बड़ी चर्चा का कारण था अरोविंद केजरीवाल की हार। उन्होंने 30,088 वोटों पर BJP के प्रतिपक्षी परवेश वर्मा को 4,089 वोटों से मात दी, जबकि कांग्रेस के संदीप दिक्षित ने 4,568 वोट अर्जित करके अंतर को और सघन बना दिया।
दूसरी ओर, AAP के कुछ उम्मीदवारों ने बड़ी जीतें हासिल कीं। आले मोहम्मद इकबाल ने 42,724 वोटों के अंतर से डिप्टी कांग्रेस उम्मीदवार दीपती इंदोरा को हराया, और चौधरी जुबैर अहमद ने 42,477 वोटों के अंतर से वही रद्दी बिछाई। इस प्रकार, सबसे बड़े जीत अंतर के आंकड़े AAP के हाथ में रह गए, जबकि सबसे छोटे अंतर BJP के उम्मीदवारों के सामने रहे।

परिणाम के पीछे के कारण और भविष्य की दिशा
कांग्रेस ने 2020 के 4% से बढ़कर 2025 में 6% वोट शेयर हासिल किया, परन्तु यह वृद्धि अक्सर BJP के पक्ष में कार्य करती दिखी। 13 सीटों में BJP के जीत के अंतर कांग्रेस के वोटों से कम थे, जिससे यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस की भागीदारी ने विरोधी वोटों को विभाजित कर BJP को अनजाने में मदद की। यह प्रवृत्ति विशेषकर उन क्षेत्रों में स्पष्ट रही जहाँ अरोविंद केजरीवाल के निकटतम मुकाबले में धुंधले मतभेद थे।
राष्ट्रपति मोदी की राह में यह जीत एक बड़ा कदम माना जा रहा है। हाईड्राबाद और महाराष्ट्र में हाल ही में हासिल की गई सफलताओं के बाद, दिल्ली में भी BJP ने अपने राष्ट्रीय उत्थान को सतत बनाए रखा। मोदी ने मुख्य प्रचारक के रूप में काम किया, सामाजिक वर्गों को जोड़ते हुए AAP के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर चुनावी माहौल तैयार किया।
भविष्य में कौन मुख्यमंत्री बनेगा, इस प्रश्न का अभी स्पष्ट उत्तर नहीं मिला है। परवेश वर्मा, तीन बार के MLA विजेंदर गुप्ता और सांसद मनोज तिवारी जैसे नाम संभावित दावे का हिस्सा हैं, परन्तु BJP अक्सर अज्ञात चेहरों को मुख्यमंत्री पद पर रखती है। इस बार भी उन ही रणनीतियों को दोहराया जा सकता है।
AAP के राष्ट्रीय आकांक्षाओं के लिए यह परिणाम एक गंभीर धक्का है। अब पार्टी सिर्फ पंजाब में सत्ता रखती है, जबकि दिल्ली में उनका प्रभाव काफी घट गया है। केजरीवाल की अबिलिटी और पार्टी की नेतृत्व शैली को लेकर अंदरूनी चर्चा तेज़ी से चल रही है, और यह देखना बाकी है कि अगले चुनावों में वे कैसे पुनः स्थापित होते हैं।