सुबह-सुबह ₹731 करोड़ का सौदा और 7% गिरा शेयर—ये सिग्नल क्या दे रहा है?
भारतीय शेयर बाजार में आज Ola Electric सुर्खियों में रही। शुरुआती सौदों में ₹731 करोड़ की बड़ी ब्लॉक डील हुई और कंपनी का शेयर दिन के भीतर 7% तक लुढ़क गया। सौदा औसतन ₹51.4 प्रति शेयर पर हुआ, जो पिछले बंद भाव ₹53.68 से करीब 4% डिस्काउंट पर था। स्टॉक ₹52 पर खुला और एनएसई पर इंट्राडे लो ₹49.83 तक गया।
इस ब्लॉक डील में 14.22 करोड़ शेयर हाथ बदले—यह कंपनी की कुल इक्विटी का 3.23% है। मार्केट सूत्र कहते हैं कि Hyundai Motor कंपनी संभावित विक्रेता है। मार्च 2025 की शेयरहोल्डिंग के मुताबिक Hyundai के पास Ola Electric में 2.47% हिस्सेदारी थी। मतलब, या तो Hyundai ने अपनी बड़ी हिस्सेदारी कम की/बेची या फिर इस 3.23% हिस्से में एक से ज्यादा सेलर्स शामिल रहे।
ब्लॉक डील के बाद जून के अंत में एक और ट्रांजैक्शन दिखा—करीब ₹107 करोड़ का। इस बार औसत कीमत ₹44 रही और उस दिन स्टॉक में 6% तक की और गिरावट आई। इस दूसरी डील में खरीदार और विक्रेता का खुलासा नहीं हुआ।
नतीजे, ब्रोकर कॉल्स और आगे की राह
यह भारी सेलिंग ठीक उस वक्त दिखी जब कंपनी के Q4 FY25 नतीजे निराशाजनक रहे। मार्च 2025 तिमाही में कंसोलिडेटेड नेट लॉस ₹870 करोड़ तक पहुंच गया, जबकि पिछले साल समान तिमाही में यह ₹416 करोड़ था। ऑपरेटिंग रेवेन्यू भी झटका खा गया—₹1,598 करोड़ से गिरकर ₹611 करोड़, यानी करीब 62% की साल-दर-साल गिरावट।
पूरे FY25 में नेट लॉस ₹2,276 करोड़ रहा, जो FY24 के ₹1,584 करोड़ से काफी ज्यादा है। वार्षिक ऑपरेटिंग रेवेन्यू भी ₹5,010 करोड़ से घटकर ₹4,514 करोड़ पर आ गया। मैनेजमेंट ने हालांकि बताया कि FY25 में ग्रॉस मार्जिन में 38% सुधार दर्ज हुआ और Q1 FY26 में, Q4 FY25 के मुकाबले, ग्रॉस मार्जिन में 10 प्रतिशत अंकों का और सुधार दिखा। कंपनी का फोकस FY26 में रेवेन्यू स्केल-अप और ऑपरेटिंग लीवरेज हासिल करने पर रहेगा ताकि स्थायी लाभप्रदता की ओर बढ़ा जा सके।
बाजार की धारणा फिलहाल कड़क है। 2025 की शुरुआत से अब तक स्टॉक 41% से ज्यादा गिर चुका है और अपने रिकॉर्ड हाई ₹157.40 के एक-तिहाई से भी नीचे ट्रेड कर रहा है। छह महीने में करीब 46% और पिछले तीन महीने में 11.4% की गिरावट ने निवेशकों का धैर्य परखा है।
ब्रोकरेज कॉल्स भी दबाव बढ़ा रही हैं। Kotak Institutional Equities ने शेयर पर रेटिंग ‘reduce’ से घटाकर ‘sell’ कर दी और टारगेट प्राइस ₹50 से घटाकर ₹30 कर दिया। कोटक का आकलन है कि EBITDA स्तर पर नुकसान फिलहाल जारी रह सकता है। बड़ी ब्लॉक डील्स आमतौर पर सप्लाई ओवरहैंग बनाती हैं—जब बाजार को पता रहता है कि बड़े निवेशक निकल रहे हैं तो शॉर्ट-टर्म में कीमतों पर दबाव बना रहता है।
अब सवाल—Hyundai क्यों? कंपनी के पास मार्च 2025 में 2.47% हिस्सेदारी थी। ग्लोबल ऑटो कंपनियां अक्सर स्ट्रेटेजिक या फाइनेंशियल हिस्सेदारी लेकर टेक और मार्केट ट्रेंड्स पर नजर रखती हैं। समय-समय पर वे रीबैलेंस भी करती हैं—या तो बुक प्रॉफिट लेते हैं, या स्ट्रेटेजी बदलने पर हिस्सेदारी घटाते हैं। इस केस में 3.23% का पूरा ब्लॉक Hyundai के 2.47% से बड़ा है, तो संभव है कि सौदे में एक से अधिक सेलर्स भी रहे हों।
ये भी समझना जरूरी है कि ब्लॉक डील होती क्या है। एक्सचेंज के स्पेशल विंडो में बड़े निवेशकों के बीच तय दायरे में बड़े पैमाने पर शेयर खरीदे-बेचे जाते हैं, आमतौर पर न्यूनतम ₹10 करोड़ के ट्रांजैक्शन वैल्यू के साथ। कीमत अक्सर पिछले बंद भाव के आसपास या हल्के डिस्काउंट/प्रीमियम पर तय होती है ताकि एक साथ बड़ी मात्रा बाजार को चौंकाए बिना शिफ्ट हो सके। लेकिन अगर डिस्काउंट बड़ा हो या नतीजों का बैकड्रॉप कमजोर हो, तो कीमत पर तुरंत दबाव दिखता है—आज जो हुआ, वह उसी का उदाहरण है।
ऑपरेशनल मोर्चे पर मैनेजमेंट का जोर कॉस्ट ऑप्टिमाइज़ेशन, सप्लाई-चेन एफिशिएंसी और प्रोडक्ट मिक्स पर है—यही वजह है कि मार्जिन में सुधार का दावा किया जा रहा है, भले रेवेन्यू और वॉल्यूम दबाव में रहे हों। इलेक्ट्रिक व्हीकल सेगमेंट में पिछले साल सब्सिडी स्ट्रक्चर में बदलाव, बढ़ती कॉम्पिटीशन और कीमतों में रिसेट ने कई कंपनियों की टॉपलाइन और प्रॉफिटेबिलिटी पर असर डाला है। Ola के लिए चुनौती दोहरी है—रेवेन्यू को फिर से ग्रोथ ट्रैक पर लाना और साथ ही ऑपरेटिंग लीवरेज के जरिए नुकसान घटाना।
निवेशकों के लिए डेटा यही कहानी कहता है—बड़े सौदे, कमजोर तिमाही, निचले टारगेट्स और दबाव में कीमतें। अगर मैनेजमेंट का मार्जिन-इंप्रूवमेंट ट्रैक FY26 में जारी रहता है और रेवेन्यू स्केल-अप दिखता है, तो सेंटिमेंट पलट सकता है। फिलहाल, बाजार वही डिस्काउंट कर रहा है जो उसे दिख रहा है: घाटा बढ़ा है, रेवेन्यू घटा है और बेंचमार्क से अंडरपरफॉर्मेंस लंबी हो चुकी है।
आने वाले क्वार्टर्स में दो चीजें फोकस में रहेंगी—डिलीवरी/रेवेन्यू ट्रेंड का नॉर्मलाइजेशन और कैश बर्न/EBITDA ट्रैक। साथ ही, क्या और ब्लॉक/बल्क डील्स आती हैं या सप्लाई ओवरहैंग कम होता है—यह भी शॉर्ट-टर्म प्राइस ट्रेजेक्टरी तय करेगा। सेक्टर-लेवल पर पॉलिसी सपोर्ट, बैटरी लागत और डिमांड रिकवरी की खबरें यहां से सेंटीमेंट मूवर्स बनेंगी।