जब हम बाढ़, भारी वर्षा, नदी के ओवरफ़्लो या बँदरु जल स्तर के कारण भूमि के बड़े हिस्से में पानी भर जाना. Also known as जलमग्नता, यह प्राकृतिक आपदा लोगों की जिंदगी, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर गहरा असर डालती है. नीचे हमने इस टैग के तहत मिलने वाले लेखों की झलक दी है, जिससे आप इस समस्या को बेहतर समझ सकें.
बाढ़ एक प्रमुख जल आपदा, ऐसी आपदा जो अत्यधिक जल संचयन से उत्पन्न होती है का स्वरूप है. जल आपदा में बाढ़, बँदरु, बाढ़‑सूखा चक्र शामिल हैं; इनका सम्मिलित प्रभाव अक्सर एक ही मौसमीय प्रणाली से जुड़ा होता है. जब नदी‑बाँध की क्षमता से जादा पानी बहता है, तो भूमि सतह पर जल संग्रहीत हो जाता है – यही बाढ़ का मूल कारण है.
किसी भी बाढ़ की त्वरित प्रतिक्रिया के लिए संकट प्रबंधन, ऐसे प्रोटोकॉल और तंत्र जो आपदा के दौरान बचाव, राहत और पुनर्वास का समन्वय करते हैं जरूरी है. संकट प्रबंधन में प्रारम्भिक चेतावनी, पलायन योजना, बचाव दल की तैनाती और राहत सामग्री का वितरण शामिल है. भारत में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) इस क्षेत्र का मुख्य संकल्पक है, जो राज्य‑स्तर पर स्थानीय एजेंसियों के साथ मिलकर काम करता है.
बाढ़ की भविष्यवाणी और पूर्व चेतावनी के लिए मौसम विज्ञान, वायुमंडलीय परिस्थितियों का अध्ययन और पूर्वानुमान तकनीक का उपयोग किया जाता है. रेइन्सी फोरकास्ट मॉडल, रडार इमेजिंग और उपग्रह डेटा मिलकर संभावित बाढ़‑जोखिम क्षेत्रों को चिन्हित करते हैं. जब मौसम विज्ञान विशेषज्ञ बरसात के पैटर्न का विश्लेषण करते हैं, तो वे सरकार और स्थानीय प्रशासन को समय पर चेतावनी जारी कर सकते हैं, जिससे बचाव कार्य अधिक प्रभावी बनते हैं.
बाढ़ के बाद के दौर में सरकारी राहत योजना, वित्तीय मदद, स्वास्थ्य सेवाएँ और पुनःनिर्माण सहायता कार्यात्मक होती है. भारत में पीडित व्यक्तियों को बीमा कवरेज, घर‑मरम्मत अनुदान और स्वास्थ्य जाँच के लिए विशेष योजना उपलब्ध कराई जाती है. ये योजनाएँ अक्सर राज्य‑स्तर के डिस्ट्रिक्ट लेवल के ज़िला प्रशासन द्वारा लागू की जाती हैं, जिससे राहत पहुंच जल्दी मिलती है.
स्थानीय समुदायों की भागीदारी बाढ़ प्रबंधन में अहम है. गांव‑स्तर पर स्वयंसेवक समूह, पंचायत समिति और महिला समूह सतह‑सुरक्षा उपाय जैसे ऊँचा बंध, नहरों की सफ़ाई और जल निकासी व्यवस्था में मदद करते हैं. समुदाय‑आधारित पहल अक्सर सरकारी योजना से तेज होती हैं, क्योंकि लोग सीधे जोखिम क्षेत्रों को समझते हैं.
नदी‑बेड नियोजन और जल‑स्रोत प्रबंधन बाढ़ के दीर्घकालिक समाधान में भूमिका निभाते हैं. नींद‑निःसरणी, जल‑शमन क्षेत्रों की स्थापना और बाढ़‑भविष्यवाणी मॉडल में इनका डेटा उपयोग किया जाता है. उचित नियोजन से न केवल बाढ़‑जोखिम घटता है, बल्कि जल‑स्रोत का सतत उपयोग भी संभव होता है.
तकनीकी उन्नति ने बाढ़ प्रबंधन को आसान बना दिया है. रिमोट सेंसिंग, उपग्रह और ड्रोन के माध्यम से जल स्तर की निगरानी से अधिकारी रीयल‑टाइम डेटा प्राप्त कर सकते हैं, जिससे बचाव दल को सही दिशा में भेजना आसान होता है. साथ ही, मोबाइल एप्लिकेशन और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर चलने वाली चेतावनी प्रणाली लोग‑टु‑लोग जानकारी पहुँचाती है.
इन सभी तत्वों को मिलाकर देखी जाए तो बाढ़ एक जटिल समस्या है, पर सही जानकारी, योजना और तकनीक से इसे नियंत्रित किया जा सकता है. नीचे सूचीबद्ध लेख आपके लिये बाढ़ के विभिन्न पहलुओं – कारण, रोकथाम, राहत, नीति‑निर्माण और तकनीकी समाधान – को गहराई से समझाते हैं. आगे पढ़िए और जानिए कि आप अपने घर, गाँव या शहर को बाढ़ से कैसे बचा सकते हैं.
30 सितंबर को दिल्ली में तेज़ बारिश के साथ IMD ने ऑरेंज अलर्ट जारी किया, जिससे हवाई अड्डे में उड़ानों में देरी और ट्रैफ़िक जाम हुआ, जबकि तापमान में थोड़ी गिरावट आई।