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इस्लामी परिधान प्रतिबंध: क्या बदल रहा है?

आपने हाल ही में समाचार में इस्लामिक कपड़ों पर प्रतिबंध के बारे में सुना होगा। कई राज्यों ने नए नियम पेश किए हैं, और यह बात घर‑घर चर्चा का विषय बन गई है। तो चलिए समझते हैं कि ये बदलाव क्यों आए, उनका कानूनी आधार क्या है और आम लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ेगा।

कानूनी स्थिति और प्रमुख निर्णय

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि इस प्रतिबन्ध का मूल कारण कौन‑सी अदालत या संसद का फैसला है? अभी तक भारत में कोई राष्ट्रीय कानून नहीं आया, लेकिन कुछ राज्य विधान सभा ने अपने-अपने नियम तैयार कर लिए हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार ने सार्वजनिक संस्थानों में विशिष्ट इस्लामी पोशाक (जैसे बरटू या नकार) पहनने पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है। यह निर्णय स्थानीय अदालतों में चुनौती भी बना हुआ है, इसलिए अभी पूरी स्पष्टता नहीं मिली है।

कानून के अनुसार, अगर कोई नियम मौजूदा संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) या 25 (धर्म की स्वतंत्रता) से टकराता है तो वह अमान्य हो सकता है। इसलिए कई वकीलों का कहना है कि इस प्रतिबन्ध को अदालत में चुनौती दी जाएगी, और यह देखना बाकी है कि न्यायालय कैसे रुख अपनाते हैं।

समाज पर असर और प्रतिक्रियाएँ

अब बात करते हैं आम लोगों की। कई मुस्लिम समुदाय के सदस्य मानते हैं कि यह नियम उनकी धार्मिक पहचान को चोट पहुँचा रहा है। स्कूलों में लड़कियों को नज़राना पहनने से रोकना, या सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब नहीं पहनने देना, उनके लिये बड़ा मुद्दा बन गया है। वहीं कुछ लोग कहते हैं कि यदि यह नियम सार्वजनिक व्यवस्था और सुरक्षा के लिए जरूरी है तो इसे अपनाया जा सकता है।

व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो कई स्कूल ने अब यूनिफॉर्म नीति में बदलाव कर दिया है। छात्रों को अब एक सामान्य ड्रेसकोड देना पड़ रहा है, जिससे व्यक्तिगत पसंद कम हो रही है। यह परिवर्तन अक्सर अभिभावकों के बीच भी बहस का कारण बनता है—किसी को लगता है कि सरकार उनके बच्चों की संस्कृति पर हस्तक्षेप कर रही है, तो किसी को सुरक्षा और समानता के नाम पर समर्थन मिलता है।

इसी तरह कार्यस्थल में भी बदलाव आए हैं। कुछ कंपनियों ने अब अपने ड्रेसेकोड में इस्लामी वस्त्रों को स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है या नहीं कहा है। इससे कर्मचारियों को रोज़मर्रा की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है—क्या उन्हें अपना हिजाब पहनना जारी रखना चाहिए या नई नीति के अनुसार काम करना पड़ेगा?

इन सभी मुद्दों पर सोशल मीडिया में भी तेज़ बहस चल रही है। कई युवा अपने अनुभव शेयर कर रहे हैं, कुछ तो कानून को चुनौती देने के लिए पिटिशन बना रहे हैं। दूसरी ओर, कई नागरिक इस प्रतिबन्ध को सामाजिक एकता और राष्ट्रीय पहचान की दिशा में एक कदम मानते हैं।

यदि आप इन नियमों से सीधे प्रभावित हैं, तो सबसे पहले अपने अधिकारों को समझें। स्थानीय वकीलों या गैर‑सरकारी संगठनों से सलाह लें, ताकि आप अपनी आवाज़ कानूनी तौर पर भी उठा सकें। साथ ही, अगर स्कूल या ऑफिस में नया ड्रेसकोड लागू हो रहा है, तो प्रशासन से स्पष्ट लिखित निर्देश माँगना फायदेमंद रहेगा।

समझदारी यही होगी कि इस मुद्दे को भावनाओं के बजाय तथ्य और कानूनी आधार पर देखें। तभी आप सही निर्णय ले पाएँगे—चाहे वह नियम का पालन हो या उसका विरोध। भविष्य में भी यह विषय बहस का केंद्र बना रहेगा, इसलिए अपडेटेड रहना जरूरी है।

ताजिकिस्तान में हिजाब पर प्रतिबंध: सरकार ने इस्लामी परिधान पर रोक लगाने वाले मसौदा विधेयक को दी मंजूरी

ताजिकिस्तान में हिजाब पर प्रतिबंध: सरकार ने इस्लामी परिधान पर रोक लगाने वाले मसौदा विधेयक को दी मंजूरी

ताजिकिस्तान की संसद के उच्च सदन, मशलिसी मिल्ली, ने मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब पर प्रतिबंध लगाने वाले मसौदा विधेयक को मंजूरी दी है। यह विधेयक 19 जून, 2024 को पारित किया गया, जो 'परदेशी' परिधान, जिसमें इस्लामी कपड़े शामिल हैं, के पहनने, आयात करने, बेचने और विज्ञापन करने पर रोक लगाता है। सरकार लंबे समय से राष्ट्रीय पोशाक को बढ़ावा दे रही है और इस्लामी संस्कृति पर अंकुश लगा रही है।

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