पिछले कुछ महीनों में इज़राइल और लेबनान की मिलिटेंट ग्रुप हिज़्बुल्लाह के बीच तनाव फिर से बढ़ा है। दोनों पक्षों ने सीमा पर गोलीबारी, मिसाइल लॉन्च और ड्रोन्स का प्रयोग किया है। साधारण पाठक के लिए सबसे जरूरी बात ये है कि यह संघर्ष सिर्फ दो देशों या समूह तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे मध्य‑पूर्व की सुरक्षा को प्रभावित कर रहा है।
हिज़्बुल्लाह 1980 के दशक में ईरान से समर्थन लेकर बना था। उसका लक्ष्य लेबनान में शिया समुदाय की रक्षा और इज़राइल को रोकना रहा है। दूसरी तरफ, इज़राइल ने हमेशा अपने दक्षिणी सीमा की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। 2006 की लिबां युद्ध के बाद दोनों पक्षों ने एक तरह का ‘स्थिर‑संकट’ बना रखा था, पर कभी‑कभी छोटे‑छोटे टकराव फिर से शुरू हो जाते थे।
अब बात करते हैं हालिया घटनाओं की। पिछले हफ्ते इज़राइल ने लेबनान के उत्तर‑पूर्वी इलाके में दो मिलिटरी बेस को निशाना बनाया, जिसके जवाब में हिज़्बुल्लाह ने गाज़ा स्ट्रिप और इज़राइल के भीतर मिसाइल फायर किया। दोनों पक्षों ने कहा कि यह ‘प्रतिक्रिया’ है और आगे भी कोई रोक नहीं पाएंगे।
इस टकराव का सबसे बड़ा असर पड़ोसी देशों में देखा जा रहा है। सीरिया, जॉर्डन और फिलिस्तीन के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से दोनों पक्षों को शांति की अपील की है, पर जमीन पर स्थितियों में सुधार नहीं दिखता। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया इसको ‘स्थिर‑संकट’ कह रहा है, लेकिन असली सवाल यह है कि कब तक ऐसी स्थिति जारी रह सकती है?
अगर हिज़्बुल्लाह और इज़राइल के बीच कोई बड़ा सैन्य ऑपरेशन होता है तो लेबनान की आर्थिक हालत और नागरिक जीवन पर गहरा असर पड़ेगा। कई बार हमने देखा है कि युद्ध से बुनियादी सेवाएं जैसे बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवा बाधित हो जाती हैं। इसके साथ ही शरणार्थी प्रवाह भी बढ़ता है, जिससे पड़ोसी देशों पर बोझ बढ़ता है।
इज़राइल के लिए भी नुकसान नहीं कम है। लगातार मिसाइल चेतावनियों से नागरिकों में डर बना रहता है और रक्षा खर्च में इजाफा होता है। इस तरह की स्थिति निवेशकों को भी हिचकिचाहट देती है, जिससे स्थानीय बाजार में अस्थिरता बढ़ती है।
आख़िरी बात यह है कि अंतर्राष्ट्रीय शक्ति—अमेरिका, रूस और यूरोपीय यूनियन—भी इस संघर्ष को देखते हुए मध्य‑पूर्व में अपने हितों को सुरक्षित रखने की कोशिश कर रहे हैं। उनका समर्थन या विरोध दोनों पक्षों के फैसलों पर असर डालता है।
सारांश में कहें तो इज़राइल और हिज़्बुल्लाह का टकराव सिर्फ दो ही समूह नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए जोखिम पैदा करता है। अगर आप इस मुद्दे को समझना चाहते हैं, तो इतिहास, हालिया घटनाओं और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर नज़र रखें। भविष्य में स्थिति कैसे बदलती है, यह देखना बाकी है, लेकिन वर्तमान में सतर्क रहना ही सबसे अच्छा उपाय है।
फ्रांस ने अपने नागरिकों को लेबनान छोड़ने का आग्रह किया है, क्योंकि इज़राइल और हिजबुल्लाह के बीच संभावित संघर्ष के खतरे के चलते सुरक्षा स्थिति बेहद अस्थिर है। फ्रेंच विदेश मंत्रालय ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि सीधा और कनेक्टिंग फ़्लाइट्स अभी भी उपलब्ध हैं। अमेरिका और ब्रिटेन ने भी इसी प्रकार के सुझाव दिए हैं।