मिथिलराज की मांग: विकास की राह पर क्यों अटका है उत्तर बिहार का ये इलाका?

अप्रैल 21 2025

क्या है मिथिलराज की मांग और क्यों बनी ये ज़रूरी?

उत्तर बिहार का मिथिला क्षेत्र, खासकर मिथिलराज की मांग को लेकर एक बार फिर चर्चा में है। मधुबनी, दरभंगा और सहरसा जैसे जिलों में नेता और सामाजिक कार्यकर्ता लगातार कह रहे हैं कि जब तक ये इलाका प्रशासनिक तौर पर अलग राज्य नहीं बनता, तब तक यहां की हालत नहीं सुधरेगी। हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुई जोरदार प्रदर्शन में ग्रामीणों, छात्रों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने पुराने दर्द फिर उघाड़ दिए—तूतू-मेंमें सिर्फ विकास की बात पर नहीं, बल्कि क्षेत्र के लंबे समय से उपेक्षित रहने के सवाल पर भी हुई।

मिथिला राज्य आंदोलन के अध्यक्ष श्रवण चौधरी ने बताया कि एक समय था, जब यह इलाका देश की चीनी (शुगर) उत्पादन में करीब 40% तक योगदान करता था, लेकिन अब महज़ 4% रह गया है। अकेले मधुबनी के आस-पास के कई चीनी मिलें तो बरसों से बंद पड़ी हैं। जिस धरती ने भारत को अग्रणी चीनी उत्पादकता दी, वहां उद्योग अब बीते दिनों की बात लगते हैं। स्थानीय लोग गहरी निराशा के साथ कहते हैं कि हम सड़कों, अस्पतालों या स्कूल जैसी बुनियादी चीज़ों के लिए भी नेताओं के पास जाते रहते हैं, लेकिन सुनवाई नहीं होती।

भारी पलायन, हर साल बाढ़ और टूटा भविष्य

भारी पलायन, हर साल बाढ़ और टूटा भविष्य

यह इलाका केवल औद्योगिक गिरावट से परेशान नहीं है। हर साल बरसात में कोसी और बागमती जैसी नदियों की बाढ़ हजारों लोगों की जिंदगी बस से बेघर कर देती है—लेकिन स्थायी समाधान का कोई रोडमैप नहीं बन सका। प्रदर्शन में शामिल हुए सतीश झा कहते हैं, "हम जानवरों जैसी ज़िंदगी जीने को मज़बूर हैं... यहाँ कोई रोजगार नहीं, कोई भविष्य नहीं।"

अकेली बाढ़ नहीं, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की हालत भी यहां के युवाओं को अन्य राज्यों में मजदूरी, दुकानदारी और छोटे कामों की तलाश में भटकने को मजबूर करती है। जो मिथिला कभी संस्कृति और विद्या का केंद्र था, वहां अब लोग बुनियादी जरूरतों के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हैं।

  • जनसंख्या के हिसाब से 18 लोकसभा और 108 विधानसभा सीटें राज्य बनने की स्थिति में प्रस्तावित हैं।
  • 2015 में भाजपा सांसद कीर्ति झा आजाद ने संसद में भी मिथिलराज की मांग उठाई थी। इसने आंदोलन को नई रफ्तार दी।
  • स्थानीय लोग मानते हैं, अपना अलग प्रशासनिक अधिकार मिला, तो बाढ़ प्रबंधन, सड़क, अस्पताल, और उद्योग जैसे तमाम मुद्दे जल्दी सुलझ पाएंगे।

यह सच है कि झारखंड और तेलंगाना जैसे नए राज्यों के गठन के बाद से ही छोटे राज्यों को लेकर लोगों की सोच बदली है। लेकिन मिथिलराज का सवाल भावनाओं तक सीमित नहीं है—यह असल में यहां के लोगों के रोजमर्रा के संघर्ष और टूटती उम्मीदों से भी जुड़ा है। हालिया आंदोलनों और प्रदर्शनों ने यह साफ कर दिया है कि क्षेत्रीय असंतोष अब जब तक हल नहीं होगा, तब तक आवाजें और तेज होती रहेंगी।

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